किन्नरों के भगवान कौन हैं और वह किसके पुत्र थे? किन्नर की 18 रोचक बातें वनिता कासनियां पंजाब द्वारा किन्नरों के बारे में अनेकों किदवंतियाँ हैं। दुनिया में बहुत से लोग हिजड़ों के बारे में बहुत गहराई से जानना चाहते हैं। किन्नर दो शब्दों से मिलकर बना है... किं+नर’ से स्पष्ट है, उनकी योनि और आकृति पूर्णत: मनुष्य की नहीं मानी जाती। यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में दक्ष इन्हें महादेव का भक्त और गायक समझा जाता है। भोलेनाथ के शाप से बने हिजड़े मान्यता है कि किन्नरों की माँ अरिष्टा थी, जो सदैव सबका अरिष्ट या बुरा सोचती थी और पिता महर्षि और कश्पय थे। द्वेष, दुर्भावना ओर बुराई करने से अगले जन्म किन्नर बनना पड़ता है आज भी पुराणों की मान्यता है कि-बुराई करने, बुरा सोचने तथा दुर्व्यवहार करने से अगले जन्म में किन्नर बनना पड़ता है। भोलेनाथ ने इनकी माँ अरिष्टा को गन्दी, निगेटिव सोच की वजह से इनके बच्चों को हिजड़े होने का शाप दिया था। तथा पश्चाताप हेतु इन्हें धरती पर जन्म लेना पड़ा। हिजड़े जीवन भर शुभ-मङ्गल कार्य एवं शिशु जन्म के समय बलैया ले-लेकर परिवार के सभी सदस्यों को दुआएं देते हैं। इसके फलस्वरूप, जो न्योछावर मिलती है, उसे पुण्यकार्यो में खर्च करते हैं। यदि ये अड़ जाएं, तो नँगा नाच करने से नहीं चूकते। ग्रन्थों में वर्णन है कि- किन्नरों का यह अंतिम जन्म होता है। शतपथ ब्राह्मण (७:५:२:३२) में अश्वमुखी मानव शरीरवाले किन्नर का उल्लेख है। आम लोगों की पांच इन्द्रिय जागृत रहती हैं लेकिन हिजड़ों की छठी इन्द्रिय चेतनायुक्त होने से उन्हें छक्का कहते हैं। किन्नर मोह-माया से दूर इनमें बहुत ज्यादा बेशर्मी पाई जाती है, जो अन्य लोगों के लिए कर पाना असंभव है। शादी-विवाह एवं शुभ कार्यों के समय हिजड़ों की हाजिरी क्यों हैं। जाने किन्नर के धर्म से जुड़े किस्से ऐसा मानते हैं कि- हिजड़ों के ताली बजाने से जो स्पंदन या वायब्रेशन होता है, उससे घर की नकारात्मक/निगेटिव ऊर्जा दूर हो जाती है। अमृतम पत्रिका से साभार...इस ब्लॉग में हिजड़ों के बारे में बहुत ही संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है- वृहनलला, हिजड़े या किन्नरों का इतिहास..सन्दर्भ ग्रन्थ- भविष्यपुराण, महाभारत, गरुड़ पुराण, कठोपनिषद आदि 8 ग्रन्थ के अनुसार यह अति प्रतिष्ठित व महत्वपूर्ण आदिम जाति है जिसके वंशज वर्तमान जनजातीय जिला किन्नौर के निवासी माने जाते हैं। संविधान में भी इन्हें किन्नौरा और किन्नर से संबोधित किया गया है। पौराणिक कथाओं में किन्नर या किंपुरुष देवताओं की एक योनि मानी जाती थी। 5 पांडवों में से एक अर्जुन को भी हिजड़ा बनना पड़ा था। किन्नर देश’ और ‘हिमाचल’ नामक पुस्तक में उल्लेख है कि-किन्नर कैलाश, मणि महेश एवं मानसरोवर की खोज सर्वप्रथम किन्नरों ने ही की थी। हिमालय का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान निवासस्थान था। यहीं हिमवंत एवं हेमकूट क्षेत्रों में बसनेवाली मानव जाति, जो ना स्त्री होते है, ना पुरुष। दरअसल ये लिंग या योनि रहित प्राणी हैं। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरुड़मुखी, मानवशरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है।
किन्नरों के भगवान कौन हैं और वह किसके पुत्र थे?
किन्नर की 18 रोचक बातें
किन्नरों के बारे में अनेकों किदवंतियाँ हैं। दुनिया में बहुत से लोग हिजड़ों के बारे में बहुत गहराई से जानना चाहते हैं।
किन्नर दो शब्दों से मिलकर बना है... किं+नर’ से स्पष्ट है, उनकी योनि और आकृति पूर्णत: मनुष्य की नहीं मानी जाती। यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में दक्ष इन्हें महादेव का भक्त और गायक समझा जाता है।
भोलेनाथ के शाप से बने हिजड़े
मान्यता है कि किन्नरों की माँ अरिष्टा थी, जो सदैव सबका अरिष्ट या बुरा सोचती थी और पिता महर्षि और कश्पय थे।
द्वेष, दुर्भावना ओर बुराई करने से अगले जन्म किन्नर बनना पड़ता है
आज भी पुराणों की मान्यता है कि-बुराई करने, बुरा सोचने तथा दुर्व्यवहार करने से अगले जन्म में किन्नर बनना पड़ता है।
भोलेनाथ ने इनकी माँ अरिष्टा को गन्दी, निगेटिव सोच की वजह से इनके बच्चों को हिजड़े होने का शाप दिया था। तथा पश्चाताप हेतु इन्हें धरती पर जन्म लेना पड़ा।
हिजड़े जीवन भर शुभ-मङ्गल कार्य एवं शिशु जन्म के समय बलैया ले-लेकर परिवार के सभी सदस्यों को दुआएं देते हैं। इसके फलस्वरूप, जो न्योछावर मिलती है, उसे पुण्यकार्यो में खर्च करते हैं। यदि ये अड़ जाएं, तो नँगा नाच करने से नहीं चूकते।
ग्रन्थों में वर्णन है कि- किन्नरों का यह अंतिम जन्म होता है।
शतपथ ब्राह्मण (७:५:२:३२) में अश्वमुखी मानव शरीरवाले किन्नर का उल्लेख है।
आम लोगों की पांच इन्द्रिय जागृत रहती हैं लेकिन हिजड़ों की छठी इन्द्रिय चेतनायुक्त होने से उन्हें छक्का कहते हैं।
किन्नर मोह-माया से दूर इनमें बहुत ज्यादा बेशर्मी पाई जाती है, जो अन्य लोगों के लिए कर पाना असंभव है।
शादी-विवाह एवं शुभ कार्यों के समय हिजड़ों की हाजिरी क्यों हैं। जाने किन्नर के धर्म से जुड़े किस्से
ऐसा मानते हैं कि- हिजड़ों के ताली बजाने से जो स्पंदन या वायब्रेशन होता है, उससे घर की नकारात्मक/निगेटिव ऊर्जा दूर हो जाती है।
अमृतम पत्रिका से साभार...इस ब्लॉग में हिजड़ों के बारे में बहुत ही संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है-
वृहनलला, हिजड़े या किन्नरों का इतिहास..सन्दर्भ ग्रन्थ- भविष्यपुराण, महाभारत, गरुड़ पुराण, कठोपनिषद आदि 8 ग्रन्थ के अनुसार यह अति प्रतिष्ठित व महत्वपूर्ण आदिम जाति है जिसके वंशज वर्तमान जनजातीय जिला किन्नौर के निवासी माने जाते हैं। संविधान में भी इन्हें किन्नौरा और किन्नर से संबोधित किया गया है।
पौराणिक कथाओं में किन्नर या किंपुरुष देवताओं की एक योनि मानी जाती थी।
5 पांडवों में से एक अर्जुन को भी हिजड़ा बनना पड़ा था।
किन्नर देश’ और ‘हिमाचल’ नामक पुस्तक में उल्लेख है कि-किन्नर कैलाश, मणि महेश एवं मानसरोवर की खोज सर्वप्रथम किन्नरों ने ही की थी।
हिमालय का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान निवासस्थान था। यहीं हिमवंत एवं हेमकूट क्षेत्रों में बसनेवाली मानव जाति, जो ना स्त्री होते है, ना पुरुष। दरअसल ये लिंग या योनि रहित प्राणी हैं।
बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है।
मानसार में किन्नर के गरुड़मुखी, मानवशरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है।
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